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नई दिल्ली: नागरिकता कानून की धारा 6-A की संवैधानिकता पर गुरुवार को सुनाए गए सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने एक पुराने मसले के नए सिरे से उभर आने की आशंकाओं पर तो विराम लगा ही दिया, कई ऐसे पहलुओं पर भी रोशनी डाली, जिससे समकालीन बहस को दिशा मिल सकती है। इस लिहाज से यह फैसला असम में अवैध प्रवासियों के मामले को देखने के असम समझौते में रेखांकित हुए नजरिए की पुष्टि करता है।दो कटऑफ डेट
अदालत के सामने एक बड़ा सवाल यह था कि नागरिकता के लिए दो कटऑफ डेट रखना सही है या नहीं। कोर्ट ने इसे सही बताते हुए स्पष्ट किया कि असम की खास भौगोलिक स्थिति और अवैध घुसपैठियों की समस्या की गंभीरता को देखते हुए सरकार ने असम समझौते के रूप में एक राजनीतिक समाधान निकाला। धारा 6-A का जुड़ाव इसी मसले का विधायी समाधान है। कोर्ट के मुताबिक सरकार को इसका पूरा अधिकार है।
विशिष्ट मामला
जहां तक अन्य राज्यों में ऐसा प्रावधान करने की बात है तो इसका सीधा, सहज जवाब हां में आता है। लेकिन इस बिंदु पर कोर्ट का यह कहना महत्वपूर्ण है कि किसी अन्य राज्य में समस्या ने इतना गंभीर रूप लिया ही नहीं। इस संदर्भ में पश्चिम बंगाल के उदाहरण का फैसले में भी उल्लेख करते हुए कहा गया है कि असम में 40 लाख प्रवासियों की मौजूदगी पश्चिम बंगाल के 57 लाख प्रवासियों के मुकाबले ज्यादा गंभीर इसलिए मानी जाएगी क्योंकि असम में जमीन की उपलब्धता कम है। जाहिर है, अदालत का फैसला बताता है कि इस मसले को सभी तथ्यों, प्रसंगों और संदर्भों के साथ देखकर ही नतीजा निकाला जाना चाहिए।
तीन अलग श्रेणियां
यह फैसला बाहर से आकर असम में रह रहे उन तमाम लोगों के लिए राहत लेकर आया, जो खुद को अनिश्चितता में फंसा महसूस कर रहे थे। फैसले ने बिल्कुल साफ कर दिया कि किन लोगों की नागरिकता पर कोई खतरा नहीं है, किन लोगों को नागरिकता मिल सकती है और किन लोगों को अवैध प्रवासी के रूप में चिह्नित कर कानूनी तौर पर वापस भेजना है। इस लिहाज से अब अनिश्चितता के लिए कोई गुंजाइश नहीं रह गई है।
संवेदनशीलता की जरूरत फैसला परोक्ष रूप से यह भी बताता है कि इस तरह के गंभीर और संवेदनशील मसलों से निपटते हुए खास सावधानी की जरूरत है। तात्कालिक हितों से निर्देशित राजनीति इस मामले में ज्यादा खतरनाक साबित हो सकती है। फैसला भले असम के संदर्भ में दिया गया हो, लेकिन अवैध प्रवासियों का मुद्दा कई और क्षेत्रों में महत्वपूर्ण है। उम्मीद करें कि इस फैसले की रोशनी में अन्य क्षेत्रों में भी सभी संबंधित पक्ष विवाद को भड़काने के बजाय सुलझाने वाला नजरिया लेकर आगे बढ़ेंगे।
अदालत के सामने एक बड़ा सवाल यह था कि नागरिकता के लिए दो कटऑफ डेट रखना सही है या नहीं। कोर्ट ने इसे सही बताते हुए स्पष्ट किया कि असम की खास भौगोलिक स्थिति और अवैध घुसपैठियों की समस्या की गंभीरता को देखते हुए सरकार ने असम समझौते के रूप में एक राजनीतिक समाधान निकाला। धारा 6-A का जुड़ाव इसी मसले का विधायी समाधान है। कोर्ट के मुताबिक सरकार को इसका पूरा अधिकार है।
विशिष्ट मामला
जहां तक अन्य राज्यों में ऐसा प्रावधान करने की बात है तो इसका सीधा, सहज जवाब हां में आता है। लेकिन इस बिंदु पर कोर्ट का यह कहना महत्वपूर्ण है कि किसी अन्य राज्य में समस्या ने इतना गंभीर रूप लिया ही नहीं। इस संदर्भ में पश्चिम बंगाल के उदाहरण का फैसले में भी उल्लेख करते हुए कहा गया है कि असम में 40 लाख प्रवासियों की मौजूदगी पश्चिम बंगाल के 57 लाख प्रवासियों के मुकाबले ज्यादा गंभीर इसलिए मानी जाएगी क्योंकि असम में जमीन की उपलब्धता कम है। जाहिर है, अदालत का फैसला बताता है कि इस मसले को सभी तथ्यों, प्रसंगों और संदर्भों के साथ देखकर ही नतीजा निकाला जाना चाहिए।
तीन अलग श्रेणियां
यह फैसला बाहर से आकर असम में रह रहे उन तमाम लोगों के लिए राहत लेकर आया, जो खुद को अनिश्चितता में फंसा महसूस कर रहे थे। फैसले ने बिल्कुल साफ कर दिया कि किन लोगों की नागरिकता पर कोई खतरा नहीं है, किन लोगों को नागरिकता मिल सकती है और किन लोगों को अवैध प्रवासी के रूप में चिह्नित कर कानूनी तौर पर वापस भेजना है। इस लिहाज से अब अनिश्चितता के लिए कोई गुंजाइश नहीं रह गई है।
संवेदनशीलता की जरूरत फैसला परोक्ष रूप से यह भी बताता है कि इस तरह के गंभीर और संवेदनशील मसलों से निपटते हुए खास सावधानी की जरूरत है। तात्कालिक हितों से निर्देशित राजनीति इस मामले में ज्यादा खतरनाक साबित हो सकती है। फैसला भले असम के संदर्भ में दिया गया हो, लेकिन अवैध प्रवासियों का मुद्दा कई और क्षेत्रों में महत्वपूर्ण है। उम्मीद करें कि इस फैसले की रोशनी में अन्य क्षेत्रों में भी सभी संबंधित पक्ष विवाद को भड़काने के बजाय सुलझाने वाला नजरिया लेकर आगे बढ़ेंगे।
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